Sankalp Mantra

Sankalp Mantra
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sankalp mantra, संकल्प मंत्र एक संस्कृत मंत्र है जो पूजा या धार्मिक अनुष्ठान शुरू करने से पहले बोला जाता है। यह मंत्र व्यक्ति को अपने उद्देश्य और संकल्प को स्पष्ट करने में मदद करता है।

Sankalp Mantra in Hindi

एक महत्वपूर्ण हिन्दू अनुष्ठान है, जैसे किसी भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेष का पुजा आवष्यक है, ठिक उसी प्रकार किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले यह मंत्र बोला जाता है। यह मंत्र व्यक्ति की इच्छा और संकल्प को व्यक्त करता है, और इस बात का संकल्प लेता है कि वह कार्य पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करेगा।

  • “ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया. प्रवर्तमानस्य चाणक्या अध्यक्ष ब्रह्मणों नित्य प्रात विष्णु पड़े श्रीश्वेतवाराहकल्पे. वैवस्वतमन्वंतरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्मू दीप पर भू-लोक. भारतवर्षे भरतखंडे आर्यावर्ते.” 
  • “ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकलाभीष्टसिद्धये …” 
  • “ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ हृषीकेशाय नम:” 

संकल्प मंत्र का अर्थ है, “मैं इस अनुष्ठान को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करता हूं और मुझे विश्वास है कि भगवान मुझे सफल करेंगे।” 

  • उद्देश्य स्पष्ट करना:यह मंत्र व्यक्ति को अपने अनुष्ठान के उद्देश्य को स्पष्ट करने में मदद करता है।
  • संकल्प व्यक्त करना:यह मंत्र व्यक्ति को अपने संकल्प को व्यक्त करने में मदद करता है।
  • मानसिक एकाग्रता:यह मंत्र व्यक्ति को मानसिक रूप से एकाग्र होने में मदद करता है।
  • शुभ शुरुआत:यह मंत्र अनुष्ठान की शुरुआत को शुभ बनाता है। 

संक्षेप में, संकल्प मंत्र एक ऐसा मंत्र है जो पूजा या अनुष्ठान शुरू करने से पहले बोला जाता है, ताकि व्यक्ति अपने उद्देश्य और संकल्प को स्पष्ट कर सके और अनुष्ठान की शुरुआत शुभ हो सके। 

ऊँ- यह ब्रह्माण्ड की मूल ध्वनि है, जो ईश्वर को दर्शाती है।

विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः- विष्णु का तीन बार उल्लेख, उनकी महत्ता और शक्ति को दर्शाता है।

श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य- भगवान विष्णु की महिमा का उल्लेख।

विष्णोः आज्ञया प्रवर्तमानस्य- भगवान विष्णु के आदेश से।

अद्य- आज।

ब्रह्मणः द्वितीय परार्धे- ब्रह्मा के दूसरे परार्ध में, वर्तमान समय का संदर्भ।

श्रीश्वेतवराहकल्पे- वर्तमान कल्प का संदर्भ।

वैवस्वतमन्वन्तरे- वैवस्वत मनु के अंतराल में।

अष्टाविंशतितमे कलियुगे- 28वें कलियुग में।

कलि प्रथम चरणे- कलियुग के पहले चरण में।

जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखंडे- प्राचीन भारत के भौगोलिक संदर्भ।

(अपने स्थान का नाम)- अपने स्थान का उल्लेख।

मसे- मास का नाम।

शुक्ल/कृष्ण पक्षे, (तिथि) तिथौ- तिथि का उल्लेख।

(वार) वासरे- वार का उल्लेख।

(नक्षत्र) नक्षत्रे- नक्षत्र का उल्लेख।

(योग) योगे- योग का उल्लेख।

(करण) करणे- करण का उल्लेख।

एवं गुण विशेषण विशिष्टायां अस्यां (तिथि) तिथौ- इस विशेष तिथि पर।

(अपना नाम), (अपना गोत्र) गोत्रोत्पन्नः- अपना नाम और गोत्र।

अहं गृहे, (देवता का नाम) प्रीत्यर्थं, (पूजा/अनुष्ठान का उद्देश्य) करिष्ये- अपने घर में, देवता की प्रसन्नता के लिए, पूजा या अनुष्ठान का उद्देश्य।

इस मंत्र के माध्यम से, व्यक्ति अपनी पूजा को व्यक्तिगत और विशेष बनाता है, जिससे उसका महत्व और भी बढ़ जाता है। यह मंत्र न केवल भौगोलिक स्थान और समय का उल्लेख करता है, बल्कि व्यक्ति की निष्ठा और समर्पण को भी व्यक्त करता है।

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